नमाज़ से मुतअल्लिक चंद मसाइल

  


नमाज़ से मुतअल्लिक चंद मसाइल

मो० अबुल बरकात क़ासमी 

Friday 12 Nov 2021

24 घंटों में तीन औक़ात तो ऐसे हैंजिन में नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं। एक सूर्य तुलु होते वक्तदूसरा सूर्य गुरूब होते समय ओर तीसरा ज़वाल के वक्त। इन के इलावा भी बाज औक़ात ऐसे हैं जिन में नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है जैसे: जब जुमा का खुतबा शुरू हो जाएअसर की नमाज़ के बाद का वक्त ओर फजर की नमाज़ के बाद का वक्त वगैरा वगैरा। लेकिन असर और फजर की नमाज़ के बाद के वक्त में सिर्फ नफल और वह वाजिब नमाज़ पढ़ना मना है जो बंदे के अमल से वाजिब हुई हो। ना कि तमाम नमाज़ें।

लिहाज़ा असर और फजर बाद क़जा नमाज़ पड़ना बिला कराहत जायज़ और दुरुस्त है। चाहे इसी दिन की क़जा नमाज़ हो या दूसरे दिन कीअलबत्ता क़ज़ा नमाज़ आदमी को छुप कर पढ़नी चाहिएक्योंकि नमाज़ क़ज़ा करना एक गुनाह है और गुनाह का इज़हार एक दूसरा गुनाह है।

 

यहीं से एक सवाल पैदा होता है कि खुतबा जुमा के दौरान चंदा का डब्बा घुमाना कैसा हैतो उस का जवाब यह है कि इस वक्त खुतबा सुनना वाजिब है खुतबा शुरू होते ही चंदा डब्बा घुमानाबातें करना सुन्नत या नफल नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं। चंदा के लिए कोई दूसरा तरीका अपनाना चाहिए जो जायज़ और दुरुस्त हो।

 

एक मसअला है ज़ुहर की नमाज़ से पहले चार रकआत सुन्नत कासुन्नत की हैसियत वक्त गुजरने के बाद नफ़ल की हो जाती हैलेकिन दो सुन्नतों की अहादिस में बड़ी ताकीद आई है। एक फजर की सुन्नत और दूसरी ज़ुहर से पहले की सुन्नतज़ुहर से पहले की चार रकआत सुन्नत अगर फर्ज़ से पहले नही पढ़ पाया तो फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ना जरूरी है। ज़ुहर का वक्त रहते हुए उस की हैसियत नफ़ल की नही हो जाती बल्कि सुन्नत ही की रहती है। फजर की सुन्नत के बाद अगर किसी सुन्नत की ताकीद आई है तो वह ज़ुहर से पहले की चार रकआत सुन्नत है। तिरमिजी शरीफ की हदीस है हजरत आएशा राजियल्लाहू अन्हा रिवायत करती हैं कि हुज़ूर सल्लालाहू अलैहे व सल्लम ने फरमाया जो ज़ुहर से पहले की सुन्नत न पढ़ पाए उसे चाहिए कि ज़ुहर की फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ ले। इसी तरह "फिकहुल इबादात अलल मजहबिल हनफी" नामी किताब के पेज नंबर 71 में है कि ज़ुहर से पहले की सुन्नत न पढ़ पाए तो फर्ज़ नमाज़ के बाद असर से पहले पहले तक अदा कर ले। फिकहे हनफी की एक मिन्हतुस सुलूक नामी किताब के पेज नंबर 146 में लिखा है कि तमाम उलमा यही कहते हैं कि ज़ुहर से पहले की सुन्नत न पढ़ पाए तो फर्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ लेऔर यही बात सही है।

लिहाजा जिन किताबों में सुन्नतों के बारे में यह लिखा है कि वक्त गुजरने के बाद उस की हैसियत नफ़ल की हो जाती हैउस का मतलब साफ है कि वक्त गुजरने के बाद उस की हैसियत नफ़ल की होती है अगर वक्त बाकी रहे तो उस की हैसियत सुन्नत ही की रहती है। और ज़ुहर की फ़र्ज़ नमाज़ के बाद असर के वक्त से पहले तक ज़ुहर की सुन्नत का वक्त बाकी रहताअगर कोई पहले की सुन्नत न पढ़ पाए तो फर्ज़ के बाद पढ़ लेअगर कोई ऐसा कर रहा है उस को रोकना नामुनासिब अमल है।

 

कई सालों से सर्दियों के मौसम में एक सुवाल गर्दिश करने लगता है कि सदरी का बटन या जैकिट की चैन खोल कर नमाज़ होती है या नहींहोती है तो मकरुह होती है या बिला क्राहत जायज़ होती हैआदि।

मुनासिब मालूम होता है कि इस से मुतअल्लिक सही मसअला से आप को आगाह करूं। अल्लाह तबारक व तआला ने इंसान को पैदा फरमाया तो एक खुशगवार जिंदगी गुजारने के उसूल भी बयान फरमाए। कुछ Does और कुछ Don'ts की सराहत कीयानी कुछ चीजों को हराम करार दिया और कुछ चीजों को हलाल। क्योंकि हमारे लिए कौन सी चीज मुफीद है और कौन सी नुकसानदेहयह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से ज्यादा बेहतर कोई नहीं जानता है इसलिएअल्लाह ने स्वयं इन सीमाओं को निर्धारित किया है। और यह उन्ही का हक़ है। अब अगर कोई हराम को हलाल या हलाल को हराम बताता है तो गोया वह अल्लाह तआला के फैसले को नकारता हैऔर वह यह कहता है कि अल्लाह ने इसे हलाल क़रार दियायह सही नहींइसे हराम होना चाहिए। नऊजु बिल्लाह।

सोचिए यह कितना बड़ा गुनाह है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने किसी वजह से शहद खाने से अपने आप को रोक लियाजो एक हलाल चीज हैअल्लाह तआला ने इस से मुतअलिक एक सूरत ही नाजिल फरमा दी और जोरदार अल्फाज में इस विषय को बयान किया। कोई चीज हराम है तो उसके हराम होने की दलील भी है इसी तरह कोई चीज मकरुह है तो उसके मकरुह होने की भी दलील है। कोई हराम बिला दलील हराम नहीं होता और न कोई मकरुह बिला दलील मकरूह होता है।

इन मुकद्दमात को समझने के बाद अब समझिए के सदरी का बटन खोल कर नमाज पढ़ना अगर हराम हो तो हराम होने की दलील होनी चाहिएमकरूह हो तो महरूह होने की दलील होनी चाहिए और जहां तक इस नाचीज़ की मालूमात है कि उसके हराम या मगरूह होने की कोई दलील नहीं है। लिहाजा वह हलाल और जायज होगा। बाज लोग इसको "सदले सौब" के मुशाबेह करार देकर मकरूह गरदानते हैंयह सही नहींक्योंकि सडले सौब कपड़ा लटकाने की एक खास शक्ल को कहते हैंबटन खुले हुए सदरी का उससे दूर दूर तक ताल्लुक नहीं है।________ खुलासा यह हुआ के सदरी का बटन खोल कर नमाज पढ़ना बिला कराहत जायज हैक्योंकि उसके मकरूह या हराम होने की कोई दलील नहीं। و اللہ اعلم و علمہ اتم

#نماز سے متعلق چند مسائل

 

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